Causes

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शिल्प
शिल्प में ऐसी शक्ति होनी चाहिए कि वह लोगों को संकीर्ण सीमाओं से ऊपर उठाकर उसे ऐसे ऊँचे स्‍थान पर पहुँचा दे जहाँ मनुष्‍य केवल मनुष्‍य रह जाता है। भारत के शिल्प और शिल्पकार यहाँ की लोक एवं शास्त्रीय परंपरा का अभिन्न अंग हैं। यह ऐतिहासिक समांगीकरण कई हज़ार वर्षों से विद्यमान है। कृषि अर्थव्यवस्था में आम लोगों और शहरी लोगों, दोनों के लिए प्रतिदिन उपयोग के लिए हाथों से बनाई गई वस्तुएँ शिल्प की दृष्टि से भारत की सांस्कृतिक परंपरा को दर्शाती हैं।
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शिक्षा
शिक्षा का वास्तविक अर्थ ज्ञान प्राप्ति है। इसमें न केवल एकल व्यक्ति के लिए ज्ञानार्जन का आधार साधन है, बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक, और राष्ट्रीय स्तर पर विकास का माध्यम भी है। शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्त्व का विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए समाजीकृत करती है तथा समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान तथा कौशल उपलब्ध कराती है।
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कला और संस्कृति
कला ही आत्मिक शान्ति का माध्‍यम है। यह ‍कठिन तपस्‍या है, साधना है। इसी के माध्‍यम से कलाकार सुनहरी और इन्‍द्रधनुषी आत्‍मा से स्‍वप्निल विचारों को साकार रूप देता है। संस्कृति किसी भी देश, जाति और समुदाय की आत्मा होती है। संस्कृति से ही देश, जाति या समुदाय के उन समस्त संस्कारों का बोध होता है जिनके सहारे वह अपने आदर्शों, जीवन मूल्यों, आदि का निर्धारण करता है। अतः संस्कृति का साधारण अर्थ होता है-संस्कार, सुधार, परिष्कार, शुद्धि, सजावट आदि।
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पर्यटन
प्राचीन ग्रंथों में स्पष्ट रूप से मानव के विकास, सुख और शांति की संतुष्टि व ज्ञान के लिए पर्यटन को अति आवश्यक माना गया है। हमारे देश के ऋषि मुनियों ने भी पर्यटन को प्रथम महत्व दिया है। पर्यटन से लोगों को विभिन्न संस्कृतियों, ऐतिहासिक स्थलों, और प्राकृतिक परिदृश्यों का अनुभव मिलता है. पर्यटन से लोगों को दुनिया भर के लोगों से जुड़ने का मौका मिलता है.
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साहित्य
साहित्य जीवन का आधार है। साहित्य मानवीय रिश्तों को जोड़ता है. साहित्य हमें यह परिभाषित करने में मदद करता है कि क्या सही है और क्या गलत है. साहित्य हमें दूसरों को बेहतर ढंग से समझने में मदद करता है. साहित्य हमारी आलोचनात्मक सोच क्षमताओं में सुधार करता है. साहित्य हमें उन चीज़ों को समझने में मदद करता है जिन्हें आसानी से समझा और समझाया नहीं जा सकता है.
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सामाजिक
समाज में रहकर व्यक्ति का विकास होता है. समाज में रहने से व्यक्ति की हर तरह की ज़रूरतें पूरी होती हैं. समाज में रहने से व्यक्ति का चरित्र निर्माण होता है. समाज में रहकर व्यक्ति को अपने सुख-दुख बांटने के लिए किसी न किसी की ज़रूरत होती है. समाज में रहकर व्यक्ति को पहचान की ज़रूरत भी पूरी होती है. समाज में रहकर व्यक्ति को एक जटिल दुनिया में आगे बढ़ने के लिए ज़रूरी कौशल सीखने में मदद मिलती है.
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पत्र-व्यवहार हेतु पता- स्वदेश संस्थान, भारत केंद्रीय कार्यालय- सागर कला भवन, (एस. बी. सागर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट) नाका चुंगी, फैजाबाद जिला - अयोध्या, उत्तर प्रदेश, भारत, पिन कोड - 224001 अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें - 8874478080, 9616174242